World Family Day: एक कुनबा रोज 60 KG आटा और 30 KG सब्जी खा जाता है, जानें और खास बातें
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नागौर. समाज की सबसे दूसरी छोटी इकाई परिवार होती है। आज जब जमाना एकल परिवारों का है, वहीं राजस्थान में एक परिवार इससे एकदम हटके है। आज विश्व परिवार दिवस (World Family Day) पर हम आपको इस परिवार की हैरान कर देने वाली हकीकत से रू-ब-रू करा रहे हैं। गजब की बात है कि इस परिवार के खाने में 60 किलो आटे से रोटियां बनाई जाती हैं। रोटी खाने के लिए साथ में 30 किलो सब्जी भी लग जाती है सो अलग। आइए इस परिवार के बारे में थोड़ा और ज्यादा जानने का प्रयत्न करते हैं…
दरअसल, नागौर के पांचौड़ी की सूरजाराम की ढाणी में रहता दुर्गाराम प्रजापत का परिवार आज मिसाल बन चुका है। इस परिवार में दुर्गाराम समेत 6 भाइयों और उनकी पत्नियों के अलावा 30 बेटे और उनकी पत्नियां, 15 बेटियां, 46 पोते, 26 पोतियां और 4 पोते की बहुएं हैं। यह अलग बात है कि इनमें से 14 बेटियों और 2 पोतियों की शादी हो चुकी है।
50 कमरों के घर में रहने वाले 164 लोगों के इस परिवार के बारे में इसके सदस्य कैलाश बताते हैं कि यहां सभी का खाना एक साथ ही बनता है। सभी सदस्य घर में मौजूद हों तो रोज 30 किलो सब्जी बनती और 60 किलो आटे की रोटियां बनाई जाती हैं। कभी कुछ समय काम में सिलसिले में बाहर गए हों तो 5-10 किलो का फर्क पड़ता है। चूंकि परिवार बड़ा है तो खाना बनाना भी कोई खाला जी का घर नहीं। इसके लिए भी पूरा मैनेजमेंट है। परिवार की 17 औरतों में सबकी अपनी जिम्मेदारी है। कोई आटा गूंथेगी तो कोई रोटी बनाएगी। इसी तरह कुछ महिलाओं के पास सब्जी काटने की जिम्मेदारी है तो कुछ के पास सब्जी बनाने की। चाय बड़े टब में बनाई जाती है। आटा लोगों के घरों में ब्याह-शादी में काम आने वाली बड़ी परात में गूंथा जाता है। हर महीने 8 गैस सिलेंडर की खपत है, वहीं खाना बनाने के लिए एक लकड़ी का चूल्हा भी है।
कुल खर्च की बात करें तो महीने में यह परिवार सिर्फ खाने पर ही 3 लाख रुपए खर्च कर देता है, जो अपने आप में बहुतों की तो सालभर की कमाई होगी। अब चलता कैसे है तो इसके बारे में तेजाराम प्रजापत के मुताबिक परिवार कमाई के लिए खेती पर निर्भर है। खुद का खेत है। इसके अलावा कुछ खेत लीज पर भी ले रखे हैं। घी-दूध लस्सी का काम चलाने के लिए 20 भैंस, 15 गाय और 50 बकरियां भी हैं। इनकी देखरेख के लिए भी जिम्मेदारी तय है। पानी के लिए भी घर में ही कुआं हैं। इसके अलावा टैंक भी बना रखे हैं।
परिवार के मुखिया दुर्गाराम का कहना है कि मजबूत रिश्तों की बागडोर एक-दूसरे को सुख-दुख का भागीदार बनाती है। परिवार का हर सदस्य अपने-अपने सामर्थ्य से मदद कर परिवार के हर काज को साकार करता है तो ही खुशी होती है। आदमी की खुशी परिवार की खुशी से अलग नहीं हो सकती।