भरत चक्रसाहित्य चक्र

साधारण से परिवार के बेटे ने समझी मायानगरी की माया; बन गया ‘Bhojpuri Music Road’ का मालिक

TV Serials और Bollywood Films में दिखाया अभिनय का दम; संजय दत्त की 'पानीपत' तो अब अजय देवगन की 'औरों में कहा दम था...' में नजर आए अरविंद प्रजापति उर्फ बिल्ला ओनली तेजधार

शब्द चक्र न्यूज के लिए सम्पादक बलराज मोर के साथ खास बातचीत

ई है मुंबई नगरिया…। तू देख बबुआ। भारतीय सिनेमा के सदी के महानायक अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गया यह गाना हर किसी को ही लुभा लेता है। लुभा क्या लेता है-हैरानी में डाल देता है कि पता नहीं, इस मुंबई नगरी में बसा आदमी कितना बड़ा रुतबा रखता होगा, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। यहां डॉ. राही मासूम रजा जैसे लोगों को ही नहीं, बहुत से लोगों को भूखे पेट रातें काटनी पड़ी हैं। इनमें एक नाम बिल्ला का भी है। बिल्ला मतलब लंबे-चौड़े कद वाले विलेन माणिक ईरानी से नहीं, बल्कि एक साधारण से परिवार से निकलकर मायानगरी की माया को न सिर्फ समझने में कामयाब रहा, बल्कि कामयाबी के एक मुकाम पर पहुंच गया। बिल्ला नहीं, बल्कि बिल्ला तेजधार कहिए जनाब। आइए जानें भोजपुरी म्यूजिक रोड कंपनी के हैड अरविंद बिल्ला तेजधार के बारे में बहुत कुछ…

2 अक्टूबर को 1987 को पंजाब के फगवाड़ा में बिहार के सीवान मूल के हरिओम प्रजापति के घर एक बच्चे का जन्म हुआ। नाम रखा गया अरविंद। अरविंद का मतलब आंवला होता है। इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि आंवले में गुण बहुत होते हैं। जितने मर्जी रूप बदल लें, लेकिन हर रूप में इसकी अपनी पहचान होती है। कुछ ऐसी ही है अरविंद प्रजापति की कहानी।

अब अगर परिवार के पिछौकड़ में जाएं तो एक वक्त था, जब बेहद तंग हालात परिवार से आते अरविंद के पिता हरिओम प्रजापति महज 9 साल की उम्र में एक परिचित के साथ काम की तलाश में फगवाड़ा आ गए थे। यहां उन्होंने लोगों के घरों में झाड़ू-पोंछा किया, झूठे बर्तन तक भी धोए। चाय की टपरी पर काम किया तो कभी कैमिकल फैक्ट्री में भी जान हथेली पर रखी। वक्त बदला, 1989 में जमापूंजी से अपनी मशीन खरीदकर उसी फैक्ट्री में ठेकेदार बन गए। 1995 में एक प्लॉट तो बाद में धीरे-धीरे सिर पर अपनी छत का जुगाड़ करने में कामयाब हो गए। अब अपनों का साथ भी हरिओम को मिल गया।

बड़े बेटे अरविंद का मन पढ़ाई में कम ही लगता था, लेकिन जैसे-तैसे 10वीं तक पढ़ने के बाद एक ठप्पा लग गया-खोटा सिक्का। कोई बात नहीं, हर घर में एक जौहरी होता है, जो कोयले की खान से निकले हीरे को पहचान ही लेता है। ऐसे ही अरविंद के दादा जी नगीना पंडित ने बच्चे की भावनाओं को समझा। इसी सहारे का असर था कि अरविंद के दिल में एक कवि का जन्म हो गया। 3 हजार से ज्यादा गाने लिख चुके  अरविंद को अपने लिखे गानों को अपनी आवाज देने के लिए कोई मंच मिला नहीं।

शादी और संघर्ष की कहानी

7 मई 2009 को दादा जी की पोते का ब्याह देखने की इच्छा को पूरा करने के लिए शादी के बंधन में बांध दिया गया। समझने वाला चला गया तो घर में जी लगना मुश्किल हो गया और चार महीने बाद ही अरविंद ने घर की दहलीज लांघ दी। महीनों तक सूरत, दिल्ली समेत कई जगह छोटा-मोटा काम करने के बाद सुबह का भूला उस वक्त फिर से लौट आया, जब एक बेटी का पिता बन गया। बेटी तो लक्ष्मी का रूप होती है। यह बात उस वक्त और भी साबित हो गई, जब अगस्त 2010 में एक अखबार में कृष्णा फिल्म प्रोडक्शन का एक विज्ञापन पढ़कर सिंगर बनने के पुराने सपने को पूरा करने के लिए पोर्टफोलियो बनवना था तो परिवार की माली हालत ठीक नहीं होने की वजह से 25 हजार रुपए का खर्चा सपने पर भारी पड़ गया। इसके बाद मन के मौजी अरविंद ने फिर एक बार घर छोड़ दिया। 2014 में पत्नी शोभा ने एक बेटे अभिमन्यु को जन्म दिया तो फिर अपनों का प्यार वापस खींच लाया। यह वक्त भी कुछ ठीक नहीं बीता, काम-धंधा था नहीं और अपनी कविताओं को गुनगुनाने की वजह से अब पागल का भी टैग जलने वाले पड़ोसियों ने लगा दिया। हालांकि बुरे पड़ोसियों में से अच्छे एक हैप्पी नामक दोस्त की सलाह पर 2016 में एक रिश्तेदार के साथ अरविंद मुंबई चला गया। इसके बाद आत्मसम्मान की खातिर कभी किसी फैक्ट्री में काम किया तो कभी किसी बिजनेस मार्केटिंग कंपनी में, लेकिन मायानगरी की माया अनोखी है। धोखेबाजों की कमी नहीं है वहां। बावजूद इसके यह नगरी आदमी को वापस भी नहीं लौटने देती। आदमी ठीक से बैठ भी न सके, ऐसी जगह में अरविंद जैसे बहुतों को बंधक बनाकर रखा जाता था। एक टाइम खाने को दिया जाता था, मगर खानापूर्ति का। कई बार वापस भाग आने का मन हुआ, पर यह सिर्फ सोचना ही आसान था।

रूपहले पर्दे पर इन कहानियों में है अरविंद की पहचान

गोरे गांव स्टेशन पर दिन तोड़ते अरविंद को 6 जून 2017 को पहली बार साउथ की फिल्म रॉकी में भीड़ में एक रोल मिला। 4 मराठी सीरियल एक होती राजकन्या, छतरी वाली, देवा शपथ और प्रेमा तू जा रंगा के साथ भोजपुरी फिल्मों माही रे माही हमका ले के जाई (मजदूर के रोल में), केहु दिवाना बा नैईहर (हवलदार पांडे), हम बदला लेंगे, लोहा पहलवान में ही नहीं, बल्कि हिंदी सिनेमा में भी हाथ आजमा चुके हैं। इनमें मेरे साईं, मुस्कान (ठेले वाला), शक्ति, साम दाम दंड भेद, चंद्रशेखर, बाला जी टेलीफिल्मस के आदि गुरु शंकराचार्य, गैलेक्सी प्रोडक्शन के पृथ्वी वल्लभ, तो टारगेट इंडिया (फौजी), ठाकरे (गुंडा), वार, लक्ष्मी, पानीपत (में एक मराठा सैनिक के रूप में), औरों में कहां दम था, सैक्टर-36, दोस्ती के साइड इफैक्ट, वेब सीरिज अंधाधुंध कानून, मिर्जापुर-3, मुंबई डायरी-2, मध्यांतर में नजर आ चुके हैं। मौजूदा समय में शॉर्ट मूवी चोर, दूल्हे की जहरीली पाद, चंदा फिल्मस की शॉर्ट मूवी फिल्म एक नशा और इच्छाधारी नाग का आतंक में काम किया है। इसमें नाग का लीड रोल खूब सराहा जा रहा है। भोजपुरी गायकी में 2022 में एल्बम हादसा, जीवन पर आधारित यह रचना 2016 में लिखी गई थी।

उपलब्धि और सम्मान

  • अरविंद, सुनील विश्वास (दिल के दौरे के चलते निधन हो चुका है) को अपना गुरु मानते हैं। गैलेक्सी प्रोडक्शन के पृथ्वी वल्लभ के कास्टिंग डायरैक्टर रहे सुनील विश्वास ने अरविंद की अथक मेहनत के चलते इन्हें तेजधार बिल्ला नाम दिया। वह कहते थे-बेटा तुम बहुत ऊपर तक जाओगे।
  • 2020-21 से सिने वर्कर्स एंड फिल्म प्रोड्यूसर वैल्फेयर सोसायटी के मैंबर हैं।
  • 2022 में नॉर्थ इंडियन फिल्म एंड टैलीविजन डैवलपमैंट एसोसिएशन की मैंबरशिप हासिल की।
  • 2023 में संगीत कलाकार यूनियन और भारतीय लोक कलाकार मंच की मैंबरशिप हासिल हुई।
  • 2023 में भारतीय कलाकार संघ संपूर्ण भारत से राष्ट्रीय गौरव सम्मान

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