एक ऐसा शासनकाल, जिसमें औरतों को नहीं थी छाती ढकने की इजाजत; टैक्स नहीं देती तो काट दिए जाते थे प्राइवेट पार्ट
भले ही कोई यह कहता नहीं थक रहा कि मानव एक सामाजिक प्राणी है, लेकिन असल में समाज एक मिट्टी के खिलौने से बढ़कर कुछ भी नहीं है। धर्म के कुछ ठेकेदार इसके साथ जो मर्जी बर्ताव करें, बेचारा कोई गिला-शिकवा भी नहीं कर सकता। यही है समाज का असली चरित्र और आज इतिहास के पन्नों से शब्द चक्र न्यूज आपके लिए लेकर आया है एक ऐसे राज्य की कहानी, जिसमें औरतों को अपनी छाती को ढकने की इजाजत नहीं होती थी। ऐसा करने पर या तो उनसे उनके स्तनों के आकार पर टैक्स लिया जाता था या फिर स्तन ही काट दिए जाते थे।
विश्वगुरु रहे भारतवर्ष के इस कोने में था यह गंदा कानून
यह कहानी है मौजूदा वक्त में भारत के सबसे ज्यादा शिक्षित राज्य केरल की। बड़ा ही शर्मनाक सच है कि एक जमाने में इस क्षेत्र में पड़ती त्रावणकोर रियासत में महिलाओं को अपनी छाती ढकने की इजाजत नहीं होती थी। चेन्नई में पहला अंग्रेजी अखबार लांच करने वाली ‘मद्रास कुरियर’ और विश्वभर में प्रसिद्ध ‘ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (BBC)’ की रिपोर्टों पर गौर करें तो त्रावणकोर के राजा ने अपने सलाहकारों के कहने पर निचली जाति की महिलाओं के लिए छाती को ढकने के एवज में टैक्स का कानून लागू किया था।
आप इस कहानी को हिंदी में भी पढ़ सकते हैं, यहां क्लिक करें
इस कानून के तहत अगर राजतंत्र का कोई व्यक्ति या ब्राह्मण वगैरह सामने आ जाता था तो निचली जाति की महिलाओं को अपनी छाती से कपड़े हटाने पड़ते थे या छाती ढकने के एवज में टैक्स देना होता था। आदेश नहीं मानने पर महिलाओं को सजा भी दी जाती थी। जानी-मानी किताब ‘महारानी’ के लेखक जर्मनी दास और अन्य इतिहासहार बताते हैं कि इस कानून के दायरे में एजवा, शेनार या शनारस, नाडार, जैसी जातियों की महिलाएं शामिल थी। उन्हें छाती को पूरी तरह खुला रखना होता था। यहां तक कि त्रावणकोर की रानी भी इस व्यवस्था को सही मानती थी।
इस तरह खत्म हुई 125 साल पुरानी कुप्रथा
लंबे अर्से के जुल्म के बाद एक बार नांगेली नाम की एक महिला ने इस गंदे कानून का विरोध किया तो उसके स्तन काट दिए गए और इससे उसकी मौत हो गई। इसके बाद निचली जाति के लोग एकजुट हो लगातार विरोध करने लग गए। बहुत से लोग चाय बागानों में काम करने लंका चले गए। जब अंग्रेज आए तो प्रताड़ित लोगों ने धर्म बदल लिया। यूरोपीय असर से उनमें जागरुकता बढ़ी और औरतों ने जब विरोध शुरू किया तो उन पर हमले होने लगे।
बहुत सी ईसाई महिलाओं ने मिशनरियों और अंग्रेज हुकूमत के सामने अपना पक्ष रखा तो 1859 में गवर्नर चार्ल्स ट्रैवेलियन इसे खत्म करने का आदेश दे दिया। बावजूद इसके एक ओर यह जुल्म चलता रहा, वहीं विरोध कर रही नाडार जाति की महिलाओं ने उच्च वर्ग हिंदू महिलाओं जैसी वस्त्र शैली विकसित की। आखिर 1865 में हर किसी को ऊपरी वस्त्र पहनने की आजादी मिली और इस तरह लगभग 125 साल के लंबे अंतराल के बाद इस कुप्रथा का अंत हुआ।
ऐसी ही और भी रोचक कहानियां पढ़ने के लिए बने रहें शब्द चक्र न्यूज के साथ