…और जब रानी की समाधि से फूट पड़ी थी अविरल जलधारा; जानें चम्बा की प्रजा के प्राण बचाने के लिए राजमाता सुनयना के बलिदान का ये अमर इतिहास
- चंबा नगर को बसाने वाले भरमौर के राजा साहिल वर्मन की पत्नी राजमाता सुनयना ने प्रजा को जलसंकट से उबारने के लिए दी थी प्राणों की आहूति
- शाह मदार चोटी पर स्थित सुई माता मंदिर में हर साल चैत्र और बैसाख महीने में उनकी याद में किया जाता है मेले का आयोजन
Historical Sui Mata Festival Chamba, चम्बा : देवभूमि हिमाचल की ऐतिहासिक नगरी चंबा में इस नगर को बसाने वाले राजा साहिल वर्मन की धर्मपत्नी राजमाता सुनयना के बलिदान को रहती दुनिया तक भुलाया नहीं जा सकता। वह नगरी की देवी हैं। शाह मदार चोटी पर उनका मंदिर है, जहां बलिदान से ठीक पहले कुछ पल के लिए उन्होंने विश्राम किया था। हर साल चैत्र और बैसाख महीने में उनकी याद में मेले का आयोजन किया जाता है। मेला विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों द्वारा मनाया जाता है। आइए जानें, क्या है ये अनूठा इतिहास? किस तरह इस ऐतिहासक नगरी का जल संकट हरने के लिए रानी ने अपने प्राणों की आहूति दे दी थी।
इतिहास के जानकार बताते हैं कि 920 ईसवी में जनजातीय क्षेत्र भरमौर के महाराजा साहिल वर्मन ने चंबा नगरी को बसाया था। उन्होंने अस रियासत का नाम अपनी लाडली बेटी चंपावती के लाड-प्यार को समर्पित किया। बीतते वक्त और बोलचाल के साथ धीरे-धीरे इस नगर का मन चंबा हो गया। राजा साहिल वर्मन ने जब चंबा नगर आबाद किया तो यहां पानी का संकट था। नगर के लोग पलायन करने लग गए।
बलिदान की मान्यता…
मान्यता है, एक दिन देवरूपी राजा साहिल वर्मन को उनकी कुलदेवी ने स्वपन में दृष्टांत दिया कि तुम अगर प्रजा की भलाई चाहते हो तो अपनी या फिर बेटे की बलि देनी होगी। चिंता में डूबे राजा साहिल वर्मन ने यह वृतांत अपनी महारानी सुनयना को सुनाया तो उन्होंने तत्काल अपने प्राण न्यौछावर करने का फैसला ले लिया। इसके बाद राजमाता सुनयना को बड़े दुखी मन से, मगर पूरे राजकीय सम्मान के साथ राजमहल से करीब 3 किलोमीटर मलूणा नामक स्थान पर ले जाया गया और जिंदा दफन कर दिया गया। जैसे ही उनकी समाधि बनी, वैसे ही उससे जलधारा फूट पड़ी। इतिहास के पन्नों में दर्ज रानी सुनयना के बलिदान की यह दास्तां आज भी उसी परंपरा से चली आ रही है। उन्हें सुई माता के नाम से भी जाना जाता है।