500 साल पुराने इस मंदिर में मां गंगा, यमुना और सरस्वती की मूर्तियां अपने आप बदलती हैं रंग; होते हैं 11 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन एक साथ
रवि कुमार/फिरोजपुर
आज सावन का आखिरी सोमवार है। न सिर्फ इस मौके पर, बल्कि पूरे सावन मंदिरों में भोले बाबा के भक्तों की अपार भीड़ जुटी रहती है। यह आस्था ऐसे ही नहीं आती। हर पवित्रस्थान का अपना एक इतिहास होता है, वहीं कोई न कोई चमत्कार भी देखने को जरूर मिल जाता है। ऐसा ही एक प्राचीन दिव्य स्थान पाकिस्तान बॉर्डर से सटे पंजाब के फिरोजपुर में भी मौजूद है। 500 साल पुराने इस माता गंगा मंदिर में 11 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन एक साथ होते हैं, वहीं यहां प्रतिष्ठित मां गंगा, यमुना और सरस्वती की प्रतिमाएं अपने आप रंग बदलती हैं। आज सावन के आखिरी सोमवार पर आइए दिव्यता से भरपूर इस अद्भुत पवित्र स्थली के दर्शन कराते हैं।
फिरोजपुर के बांसी गेट स्थित श्री गंगा मंदिर तीनों नदियों गंगा, यमुना, सरस्वती के मिलन का प्रतीक है। मंदिर के पुजारी नारायण शर्मा बताते हैं कि इस मंदिर का बहुत बड़ा ऐतिहासिक महत्व है। इस मंदिर का निर्माण आज से लगभग 500 वर्ष पहले भूरी देवी के ससुर ने करवाया था। उस वक्त भारत भूमि पर मुगलों का राज था तो भूरी देवी छिप-छिपकर इस मंदिर में पूजा करने आती थी। महर्षि भागीरथ द्वारा कड़ी तपस्या के बाद धरती पर उतारी गई गंगा नदी के नाम पर देश के कई क्षेत्रों में मंदिर हैं, लेकिन इस त्रिवेणी मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह मंदिर चारों ओर से किसी दीवार के साथ सटा हुआ नहीं है। इस मंदिर में शिव के 11 स्वरूपों पशुपति नाथ, शिव, वीरूपाय, वीरतरूपाय, भैरवाय, त्रयंबक, शुलपाणि, कमती, ईराती, महेशाय, एक दश का पूजन किया जाता है। मुख्य शिवलिंग विष्णु रूप है। त्रिवेणी गंगा, यमुना, सरस्वती, 11 रूद्र के अलावा श्री हनुमान, श्री राधा कृष्ण, श्री लक्ष्मी नारायण, श्री दुर्गा, श्री सूर्यदेव, नवग्रह, शनि, बृहस्पति, श्री राम दरबार, शिव परिवार की मूर्तियां मंदिर की शोभा बढ़ाती हैं।
इसलिए करें शिवपूजन
हर सोमवार को, भगवान शिव के अतिप्रिय मास पूरा सावन ही नहीं, जन्माष्टमी और नवरात्र को भी यहां बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस मंदिर में बने ग्यारह ज्योतिर्लिंगों का 40 दिन जलाभिषेक करने से हर श्रद्धालु की हर मनोकामना पूरी होती है। जो कोई सच्चे मन से भगवान भोलेनाथ और मां गौरी की आराधना करते हुए व्रत करते हैं, उनका वैवाहिक जीवन सदा सुखद रहता है और उनकी समस्त समस्याएं भी दूर हो जाती हैं। इतना ही नहीं, जहां, विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना के साथ इस व्रत को करती हैं, वहीं अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को विधिपूर्वक करती हैं। सावन की शिवरात्रि पर जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करने का विशेष महत्व है।