SYL Issue: भगवंत को पसंद नहीं आए मनोहर के ‘फूल’, पानी का समझौता करने के लिए अब अपनाना पड़ेगा कोई और रास्ता
चंडीगढ़. पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान को मनोहर के फूल पसंद नहीं आए। आते भी कैसे, वह पहले से ही तय करके बैठे हैं कि कोई कुछ भी करे, पानी के मुद्दे पर हम कोई समझौता नहीं करेंगे। पानी चाहिए तो अब हरियाणा को कोई और रास्ता अख्तियार करना पड़ेगा। हालांकि अभी के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने गेंद केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत के पाले में डाल देने की बात कही है। गजेंद्र सिंह शेखावत दोबारा मीटिंग के लिए बुलाएंगे तो आगामी कार्रवाई की जाएगी और यदि ऐसा नहीं होता तो हरियाणा सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखेगी। मामले में सुप्रीम कोर्ट को फैसला सुनाना है।
ये है हरियाणा-पंजाब में पानी के बंटवारे का पुराना विवाद
बता दें कि सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL Canal) का विवाद 1966 से चल रहा है, जब पंजाब और हरियाणा दोनों अलग-अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आए थे। हालांकि इससे पहले 1955 में रावी और ब्यास में बहने वाले पानी का आंकलन 15.85 मिलियन एकड़ फीट (MAF) किया गया। केंद्र सरकार ने राजस्थान, अविभाजित पंजाब और जम्मू कश्मीर के बीच एक बैठक कराई। ये नदियां इन्हीं तीनों राज्यों से गुजरती थी। तब राजस्थान को आठ MAF, अविभाजित पंजाब को 7.20 MAF और जम्मू कश्मीर को 0.65 MAF पानी आबंटित किया गया।
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जब हरियाणा अलग राज्य बन गया तो पंजाब के हिस्से के 7.2 MAF पानी में से 3.5 MAF हरियाणा को देने पर बात हुई, लेकिन पंजाब ने रावी और ब्यास नदियों का पानी हरियाणा के साथ बांटने का खुलकर विरोध किया। 1981 में हुए पुनर्मूल्यांकन के बाद पानी का आंकलन बढ़कर 17.17 MAF हो गया। इसमें से पंजाब को 4.22 MAF, हरियाणा को 3.5 MAF और राजस्थान को 8.6 MAF पानी आबंटित हुआ। हालांकि ये बंटवारा कभी लागू नहीं हो सका। इसी बीच 8 अप्रैल 1982 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हरियाणा और पंजाब के बीच पानी के बंटवारे को सिरे चढ़ाने के लिए पंजाब के पटियाला जिले के कपूरी गांव में सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL Canal) के निर्माण की आधारशिला रखी।
इसलिए रुका नहर का निर्माण
214 किलोमीटर लंबी यह नहर पंजाब में बहने वाली सतलुज और हरियाणा से गुजरने वाली यमुना नदी को जोड़ने के लिए बननी थी। इसका 122 किलोमीटर लंबा हिस्सा पंजाब में तो 92 किलोमीटर हरियाणा में पड़ता है। अकाली दल ने विरोध में आंदोलन कर दिया तो जुलाई 1985 में राजीव गांधी ने तत्कालीन अकाली दल प्रमुख संत हरचंद सिंह लौंगोवाल के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। 20 अगस्त 1985 को लौंगोवाल की उग्रवादियों ने हत्या कर दी। बावजूद इसके सुप्रीम कोर्ट के जज वी. बालाकृष्णन एराडी के नेतृत्व में ट्रिब्यूनल बना। 1987 में सौंपी गई रिपोर्ट में इस ट्रिब्यूनल ने पंजाब के पानी के कोटे को बढ़ाकर 5 MAF कर दिया गया। हरियाणा का कोटा बढ़ाकर 3.83 MAF करने की सिफारिश की। 1990 में SYL प्रोजैक्ट पर काम कर रहे चीफ इंजीनियर एमएल सेखड़ी और इंजीनियर अवतार सिंह औलख की हत्या कर दी गई। दो अलग-अलग मौकों पर मजदूरों की गोली मार दी गई। इसके बाद नहर का निर्माण रोक दिया गया। हरियाणा अपने हिस्से की नहर बना चुका है, लेकिन पंजाब ने अपना काम आज तक पूरा नहीं किया। लंबे समय से यह विवाद विवाद ही बना हुआ है।
ये है ताजा स्थिति
हालिया अपडेट की बात करें तो पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकारें हैं। ऐसे में सितंबर 2022 में सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL Canal) के मुद्दे के सुलझने के कुछ चांस बने। एक ओर पंजाब अपना रुख ना का तय किए हुए है, वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी बड़ा दोगला बयान दे डाला। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई तो कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा कि पंजाब सहयोग नहीं कर रहा। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अप्रैल में मीटिंग के लिए भेजी चिट्ठी का जवाब नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय को कहा कि वह पंजाब और हरियाणा से मीटिंग करके इसकी रिपोर्ट दें। इसकी अगली सुनवाई 19 जनवरी को होनी है, वहीं इससे पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री ने पंजाब के मुख्यमंत्री के साथ 14 अक्टूबर की बैठक तय की थी। आज बैठक हुई तो पंजाब सरकार इस विषय पर सहमत नहीं हुई।
हरियाणा मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से कहा कि पानी पर चर्चा बाद में कर लेंगे लेकिन पंजाब पहले नहर का निर्माण करे। लेकिन भगवंत मान ने मजबूती से जवाब देते हुए कहा कि जब पंजाब के पास हरियाणा के लिए पानी ही नहीं है तो फिर नहर निर्माण का सवाल ही नहीं उठता। मान ने कहा कि हरियाणा पानी के बंदोबस्त के लिए PM नरेंद्र मोदी से अपील करें। इस पर मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि पंजाब सरकार ने सहमति नहीं जताई है। ऐसे में पहले वह केंद्रीय जल मंत्री गजेंद्र शेखावत को मीटिंग की रिपोर्ट देंगे। यदि गजेंद्र सिंह शेखावत दोबारा मीटिंग के लिए बुलाएंगे तो आगामी कार्रवाई की जाएगी और यदि ऐसा नहीं होता तो हरियाणा सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखेगी। मामले में सुप्रीम कोर्ट को फैसला सुनाना है।