International Film Festival: Trans-woman धनंजय के संघर्ष की कहानी Admitted बनी सर्वश्रेष्ठ नेशनल डॉक्युमैंट्री
चंडीगढ़. International Film Festival: अंतरराष्ट्रीय फिल्म फैस्टिवल से बहुत से कलाकारों को अपनी ही तरह की आस थी, वहीं इस दौड़ में एक ट्रांसवुमैन (Transwoman) की जिंदगी पर बनी पहली डॉक्युमैंटरी फिल्म एडमिटेड (Admitted) को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय डॉक्युमैंट्री (Best National Documentary) मिलना न सिर्फ इसकी पृष्ठभूमि बनी शख्सियत के लिए, बल्कि सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़, ट्रांसजैंडर वर्ग के लिए भी गर्व की बात है। शब्द चक्र न्यूज आपको रू-ब-रू करा रहा है, उस शख्सियत से, जिस पर यह फिल्म बनी है। आइए जानते हैं एक उपेक्षित वर्ग से होने के बावजूद मिसाल बने 52 साल के ट्रांसजेंडर के बारे में वह सबकुछ, जो हर किसी को जानना चाहिए, ताकि हर हाल में समाज के हर वर्ग के साथ हम न्याय कर सकें।
सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ के धनंजय चौहान नामक एक ट्रांसजैंडर यहीं स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी से डबल एमए कर चुकी हैं। ट्रांस वुमैन धनंजय LGBTQ कम्युनिटी के लिए विधाता से कम नहीं हैं। उन्होंने हजारों ट्रांसजैंडरों को समाज की अंधकार भरी जेल की जंजीरों को तोड़कर उड़ने की एक नई उम्मीद दी है। वह कहती हैं कि ‘समाज या तो उन्हें नीच मानता है या परमात्मा, मगर कभी इंसान नहीं समझता’। इसी के चलते उन्होंने खुद को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया। धनंजय पंजाब यूनिवर्सिटी में ट्रांसजैंडर वॉशरूम की मांग करने वाली पहली ऐसी महिला हैं।
बकौल धनंजय, मैं बचपन से ही इस बात से वाकिफ थी कि मैं गलत शरीर में हूं। समाज (Society) के साथ अपने जैंडर के लिए मेरी लड़ाई 5 साल की उम्र में ही शुरू हो गई थी, जब मुंडन करवाने से मना कर दिया था। मैं जानती थी कि अब मुझे बाल बढ़ाने का मौका दोबारा नहीं मिलेगा। फिर भी मां-बाप से मांग रखी कि मैं मुंडन तभी करवाऊंगी, जब मुझे फ्रॉक पहनने का मौका मिलेगा’। यह मांग पूरी हुई तो फिर दिक्कत स्कूल में आई, जब 6 साल की उम्र में जिंदगी में ज्ञान की पहली सीढ़ी चढ़ना था। धनंजय (Dhananjay) को बच्चों ने बहुत सताया, लेकिन उन्हें किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता था।
वह बताती हैं कि स्कूल में वह लड़कियों के वॉशरूम में ही चली जाती थी और एक दिन उन्हें बच्चों ने वॉशरूम में ही बंद कर दिया। बच्चों की बात फिर भी एक पल के लिए समझ आ जाए, लेकिन गणित के टीचर के दुस्साहस का क्या कहना? इन सबको दरकिनार करते हुए, मगर लड़का-लड़की के असमंजस में धनंजय ने ‘कथक’ को अपना साथी बना लिया। एक दिन जब कथक सीखने जा रही थी तो गणित के टीचर ने उन्हें अपने घर में बुलाया और उनका यौन शोषण किया। यही नहीं वह धनंजय को नहीं आने पर एग्जाम में नंबर काट देने की धमकी दे ब्लैकमेल भी करता था। जैंडर डिस्फोरिया (जब महसूस होता है कि प्राकृतिक लिंग किसी व्यक्ति की लैंगिक पहचान से मेल नहीं खाता) की शिकार धनंजय को बचपन में किन्नर से बहुत डर लगता था। जब उनकी पहली बार किसी किन्नर से मुलाकात हुई तो धनंजय से उस किन्नर (Kinnar) ने पूछा ‘तुम कोती (Koti) हो?’ जब एक-दूसरे को बुलाना हो या पहली मुलाकात हो तब ‘कोती’ शब्द का इस्तेमाल किन्नर समाज में किया जाता है। उस दोस्त ने धनंजय को दोबारा अपने आप से मिलवाया। फिर 15 अप्रैल 2014 को भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक निर्णय, नालसा यूनियन ऑफ इंडिया एंड ऑथर्स, में थर्ड जैंडर को एक अलग पहचान दी। इस फैसले ने धनंजय और उनके जैसे कई लोगों को वो दर्जा दिया जो 1871 के ‘एंटी-ट्राइबल एक्ट’ (Anti Tribal Act) ने छीन लिया था। बावजूद इसके किन्नर स्कूल-कॉलेज में पहला कदम रखने से झिझक रहे थे तो उस वक्त धनंजय ने पंजाब यूनिवर्सिटी में दाखिला लेकर सबकी हिम्मत बढ़ाई।
आज उनके पास डबल एमए की डिग्री है, लेकिन नौकरी नहीं है। जनवरी 2021 में लोगों की परवाह नहीं करते हुए लंबे बालों के साथ उन्होंने कुर्ता-पाजामा पहनकर अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी। दिसंबर 2021 में उन्होंने अपना ऑपरेशन करवाया तो उस वक्त उनके साथ हमसफर रुद्र प्रताप (ट्रांसमैन) ही थे। धनंजय जैसे लोग औरत होने के उन हिस्सों को दर्शाते हैं, जहां औरत को तब तक चुप रहना पड़ता है, जब तक कि उनकी मुलाकात उनके अधिकारों से न हो। कहती हैं कि अधिकारों की लड़ाई अंतिम सांस तक चलती रहेगी। इसी कहानी पर फिल्म बनी एडमिटेड (Admitted), जिसे अब तक 75 जगहों पर स्क्रीनिंग की जगह मिल चुकी है और अब International Film Festival में भी सर्वश्रेष्ठ रही।