Sexual Exploitation में Skin to Skin टच जरूरी नहीं, इरादा ही सबसे खतरनाक: Supreme Court
नई दिल्ली. यौन उत्पीड़न से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है। स्किन-टू-स्किन कान्टैक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बाम्बे हाई कोर्ट के फैसले को रद कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि कानून का उद्देश्य अपराधी को कानून के जाल से बचने की अनुमति देना नहीं हो सकता है। शीर्ष अदालत, अटार्नी जनरल और राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की अलग-अलग अपीलों पर सुनवाई कर रही थी। इससे पहले बाम्बे हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा गया था कि स्किन टू स्किन कान्टैक्ट के बिना नाबालिग के निजी अंगों को टटोलना यौन उत्पीड़न के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने इस आधार पर दोषी को बरी कर दिया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अब साफ कर दिया है कि पाक्सो एक्ट में फिजिकल कान्टैक्ट के मायने सिर्फ स्किन-टू-स्किन टच नहीं है। सत्र अदालत ने व्यक्ति को POCSO Act और IPC की धारा 354 के तहत अपराधों के लिए तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी।
न्यायमूर्ति यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि यौन उत्पीड़न का सबसे महत्वपूर्ण घटक यौन इरादा है, न कि बच्चे के साथ स्किन-टू-स्किन कान्टैक्ट। शीर्ष अदालत ने कहा कि जब विधायिका ने इसपर स्पष्ट इरादा व्यक्त किया है, तो अदालतें प्रावधान में अस्पष्टता पैदा नहीं कर सकती हैं। अदालतें अस्पष्टता पैदा करने में अति उत्साही नहीं हो सकती हैं। इस बेंच में जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी भी शामिल थीं।