40 साल से भाई की तरह हैं स्कूलिंग से पहले दोस्त बने ये दोनों; एक ने कहा तो दूसरे ने तुरंत मार दी थी नौकरी को लात
पानीपत. आज मित्रता दिवस (Friendship Day) है। इस खास मौके पर शब्द चक्र न्यूज हरियाणा के दो दोस्तों की कहानी से आपको रू-ब-रू करा रहा है। इनकी दोस्ती की इबारत स्कूलिंग शुरू होने से पहले ही लिखी जा चुकी थी, जब पैर चलना सीखे और गली में खेलते थे। 40 साल से ज्यादा वक्त बीतने के बावजूद आज भी दोनों एक-दूसरे के दुख-सुख के साथी हैं। इससे बड़ी बात और क्या होगी कि एक के कहने पर दूसरे दोस्त ने नौकरी को ही लात मार दी थी। इसके अलावा रोचक पहलू यह भी है कि दोनों के जन्मदिन और मैरिज एनिवर्सरी एक ही सप्ताह में आती हैं। कहने वाले इसे संयोग भी कह सकते हैं, पर हकीकत जो है वो है। आइए इस अनूठी मित्रता को थोड़ा और करीब से जानते हैं…
ये कहानी है सोनीपत जिले के ऐतिहासिक गांव बरोदा के पले-बढ़े राजेंद्र सिंह और उसके बचपन के दोस्त बलराज सिंह की। एक पेशे से बिजनेस अकाउंटैंट (Business Accountant) है तो दूसरा पत्रकार। वैसे तो दोस्तों की भीड़ मिल जाएगी, पर इस कहानी की खासियत यह है कि इनमें से दोनों में किसी के भी दोस्तों की गिनती ज्यादा नहीं है। दोनों बचपन से ही एक-दूसरे के दोस्त हैं और एक-दूसरे के दुख-सुख में हमेशा एक-दूसरे की ढाल बनकर खड़े होते हैं। दोनों में कौन छोटा है और कौन बड़ा-ये फर्क करना भी मुश्किल है।
इस बारे में पेशे से पत्रकार और लेखक (Journalist And Writer) बलराज सिंह बताते हैं कि जन्म से उनका नाम राजेंद्र था, कुछ पारिवारिक कारणों के चलते नाम बदलना पड़ा। इसके बाद जब घर की दहलीज लांघकर बाहर गली-मोहल्ले में खेलना शुरू किया तो अपने ही हमनाम राजेंद्र के साथ दोस्ती हो गई। काफी दिन तक बालपन की अल्हड़मिजाजी के बाद जब पढ़ाई की बात आई तो दोनों एक साथ एक ही सैक्शन में थे। हालांकि उस वक्त सरकारी स्कूलों में इतने बच्चे होते थे कि एक ही क्लास के चार-पांच सैक्शन बनाने पड़ते थे, लेकिन दोनों की घनिष्ठता देखते हुए घर वालों ने दोनों को एक ही सैक्शन में डाल दिया। इसके बाद 12वीं तक दोनों एक साथ पढ़े। इसके बाद एक राजेंद्र पत्रकार बन गया तो दूसरा बिजनेस अकाउंटैंट।
इस बारे में बलराज सिंह बताते हैं कि जब वह रोहतक से प्रकाशित एक हिंदी दैनिक समाचार पत्र में एक प्रशिक्षु उपसंपादक की भूमिका में थे तो कई महीने तक अवैतनिक काम किया है। उन दिनों में उनके मित्र राजेंद्र एग्रीकल्चर प्रोडक्टस (खाद-बीज और कीटनाशक) से संबंधित एक कंपनी की मार्केटिंग टीम का हिस्सा थे। 7 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन था, वहीं प्रोडक्ट की सेल पर इनसैंटिव अलग से मिलता था। अगर इस हिसाब से देखा जाए तो दोनों दोस्तों में कमाई का फर्क लगभग 10 हजार से ज्यादा का बनता था। अचानक कंपनी ने कोई एक प्रोडक्ट बिना लाइसैंस के मार्केट में उतार दिया तो नौबत मार्केटिंग कर रहे लोगों के अपराधी बनने तक की आन खड़ी हो गई। उस वक्त फोन की कनैक्टीविटी भी नहीं होती थी, लेकिन दोनों दोस्तों में हर एक-दो दिन के अंतराल पर बात होती रहती थी। बलराज सिंह को जब राजेंद्र सिंह की हालत का पता चला तो उन्होंने तुरंत वह नौकरी छोड़कर आने को कहा।
इस बारे में राजेंद्र सिंह भी बताते हैं, ‘उस वक्त मैं और मेरी टीम के कुछ पंजाब के मुक्तसर में काम कर रहे थे। मैं एक दोराहे पर खड़ा था कि क्या करूं और जब मैंने अपने सबसे अजीज मित्र बलराज की राय ली तो उन्होंने मुझे नौकरी तुरंत छोड़ देने को कहा। इसके बाद बिना एक पल की देरी किए मैने वह नौकरी छोड़ दी और मुक्तसर से 315 किलोमीटर का सफर तय करके देर रात रोहतक पहुंचा। कुछ दिन दोनों दोस्त साथ रहे। इसी बीच मेरे दोस्त ने अपने बड़े भाई से कहकर मेरे लिए एक फाइनांसर के पास 5 हजार रुपए की नौकरी का जुगाड़ करवाया। उसके बाद उसी के कहने पर मैंने डिस्टैंस से अपनी पढ़ाई फिर से शुरू की और एम-कॉम किया। साथ ही अनुभव बढ़ता चला गया तो आज खुश हूं कि चार भाइयों में कमाने वाला मैं अकेला ही हूं और बावजूद इसके परिवार अच्छे से चल रहा है। यह सब मेरे मित्र के सहयोग और प्रेरणा का नतीजा है’।
ये भी हैं दोनों दोस्तों की समानताएं
उधर, एक खास बात यह भी है कि दोनों दोस्त अपने-अपने परिवार में चार-चार भाई हैं। दोनों के परिवार दोनों को अपना पांचवां बेटा मानते हैं। दोनों का जन्मदिन अक्टूबर महीने में एक ही सप्ताह के भीतर आता है। वहीं एक की मैरिज एनिवर्सरी 14 मार्च को है तो दूसरे की 21 मार्च को। एक मित्र नौकरी के सिलसिले में बरसों से हरियाणा-पंजाब के विभिन्न शहरों में मूव ऑन करता रहा है तो दूसरा रोहतक में ही सैटल है, लेकिन बावजूद इसके दोनों थोड़े-बहुत दिन में एक-दूसरे के साथ बैठक घंटों बात करने के बहाना ढूंढ ही लेते हैं। इसके बारे बलराज का कहना है कि फोन पर तो फॉर्मेलिटी होती है, घर की बात नहीं। यही कारण है कि हम दोनों अपनी जिंदगी के दुख-सुख को एक-दूसरे के साथ रू-ब-रू बैठकर ही सांझा करना ठीक समझते हैं। ईश्वर से कामना है कि रहते दम तक हमारी दोस्ती ऐसे ही नई इबारते लिखती रहे।