ऊंचे आसमान का सीना चीरकर उड़ान भरना चाहती थी रश्मि ठाकुर; अब नामी एंकर के रूप में हजारों दिलों पर करती हैं राज
राजेन्द्र ठाकुर/चंबा
देश-दुनिया में अनेक उत्सव होते हैं, जो लोगों को हमेशा याद रहते हैं। बड़ी बात है कि इन उत्सवों में जान ऐसे ही नहीं आती, बल्कि कुछ चुनिंदा किस्म के कलाकार अपनी जिंदगी की असल पूंजी लगाकर (कला का जादू बिखेरकर) इन मेलों में जान फूंकते हैं। आज हम ऐसी एक कलाकार से आपको रू-ब-रू कराने जा रहे हैं। रश्मि ठाकुर नाम तो सुना ही होगा? नाम आते ही एक मशहूर एंकर की छवि दिल में अपने आप उभरने लग जाती है। इस छवि के पीछे एक मेहनती बेटी का चरित्र छिपा हुआ है। वैसे भी इस बात में कोई दो राय नहीं कि हर सफल कलाकार के पीछे कुछ ऐसे हालात हाेते हैं, जिनकी तपिश के दम पर ये एक खरे सोने के रूप में हमारे बीच आ पाते हैं। कुछ इसी तरह का वक्त रश्मि की जिंदगी में भी गुजरा है। आइए जानें क्या है वो जज्बा, जिसके दम पर रश्मि एक उम्दा एंकर के रूप में आज हमारे बीच हैं…
बता दें कि शिवभूमि चम्बा में हाल ही में 28 जुलाई से 4 अगस्त तक अंतरराष्ट्रीय मिंजर मेले ने हजारों लोगों को खूब गुदगुदाया। इसकी आठ सांस्कृतिक संध्याओं के माध्यम से संस्कृति की एक से बढ़कर झलक देखने को मिली। देश-प्रदेश के कई नामी कलाकारों ने विरसे की अमीर विरासत को अपने सुरों में पिरोकर लोगों के सामने प्रस्तुत किया। इन्हीं से एक मखमली आवाज रश्मि ठाकुर की भी रही, जिसने इस ऐतिहासिक मेले की शामों को रंगीन बनाने वाले नामी कलाकारों और इन शामों का लुत्फ उठाने आई भीड़ के बीच एक अहम कड़ी का काम किया। सांस्कृतिक संध्याओं में स्थानीय कलाकार रश्मि ठाकुर की दिलकश आवाज और उम्दा शेर-ओ-शायरी ने हर किसी को इस कदर मोहित कर दिया कि मेले के खत्म हो जाने के लगभग एक हफ्ते बाद भी उनकी हर तरफ चर्चा हो रही है।
सैन्य अफसर थे रश्मि के पिता
कलाकारी और अपनी मधुर आवाज के दम पर लोगों के दिलों पर राज कर रही स्थानीय कलाकार रश्मि ठाकुर शिमला जिले के ग्रामीण अंचल सुन्नी से ताल्लुक रखती हैं। इनका बचपन बड़े अभाव वाला रहा, लेकिन आज यह किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। शब्द चक्र न्यूज के साथ बात करते हुए अपनी जिंदगी के सफर के बारे में रश्मि ने बताया कि एंकरिंग का शौक इन्हें बचपन से ही लग गया था। इनके पिता एक सैन्य अधिकारी थे, जिसकी वजह से इन्होंने बहुत सी जगहों के रहन-सहन और बोलचाल को करीब से जीया है। जहां-जहां भी इनके पिता की पोस्टिंग होती, वहीं परिवार को साथ जाना पड़ता था।
बचपन में ही उठ गया था माता-पिता का साया
तीन भाई-बहनों की पढ़ाई इसी तरह पूरी हुई। वैसे तो रश्मि का सपना ऊंचे गगन में उड़ते हुए देश की सेवा करना यानि एयरफोर्स में भर्ती होना था, लेकिन यह सपना सपना ही बनकर रह गया। ऐसा क्या हुआ? इस सवाल के जवाब में रश्मि बताती हैं कि बचपन में ही इनके सिर से पहले पिता का साया उठ गया तो फिर मां का आंचल भी छिन गया। इसके बाद कांधों पर जिम्मेदरियों का बोझ आ गया।
अनेक मौकों पर बिखेर चुकी आवाज का जादू
बहन-भाई और अपनी जिम्मेदारी के बोझ को उठाने के लिए रश्मि ने अपने एंकरिंग के शौक को ही अपना भविष्य बनाने का मन बनाया। वक्त बीतता गया और इस बीतते वक्त के साथ न सिर्फ पारिवारिक जिम्मेदारियों के निर्वहन में रश्मि सक्षम हुईं, बल्कि हुनर भी निखरता चला गया। कला के कद्रदानों ने रश्मि के हौसलों को उड़ान दी। इसी के बूते रश्मि हिमाचल के अंतरराष्ट्रीय मिंजर मेले में ही नहीं, बल्कि पड़ोसी राज्य हरियाणा के ऐतिहासिक सूरजकुंड मेले (फरीदाबाद में लगता हस्तशिल्प मेला), हैरिटेज फैस्ट, मैंगो फेयर और फरीदाबाद टूरिज्म के साथ कई अहम मौकों पर अपनी कला का जादू बिखेर चुकी हैं।