विकास की डरावनी तस्वीर; चैन से अंतिम संस्कार भी नहीं कर सकते 40 गांवों के लोग
राजेन्द्र ठाकुर/चंबा
हिमाचल प्रदेश में सत्ता ताे जरूर बदल गई, लेकिन प्रजा के हाल में कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा। सिर्फ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राज में ही नहीं, बल्कि अब सवा साल पूरा कर चुकी कांग्रेस सरकार भी प्रदेश के विकास पर कोई ध्यान नहीं दे रही। इसका जीता-जागता उदाहरण है प्रदेश के जिले चंबा की एक तस्वीर। यह तस्वीर चिंता पैदा कर रही है। चिंता इस बात की है कि किसी छोटे-मोटे मोहल्ले में नहीं, बल्कि पूरे 40 गांवों में अगर किसी की मौत हो जाती है, उसके परिजन चैन से उसका अंतिम संस्कार भी नहीं कर सकते।
यह बात हर कोई जानता है कि आदमी को राेटी-कपड़ा और मकान के बाद सबसे ज्यादा जरूरत अपनों के बिछड़ने के बाद उसकी अंतिम यात्रा में साथी बनने की होती है। इस पहलू को लेकर अब बात भटियात इलाके की बगढार पंचायत में पड़ती श्मशान भूमि की हो रही है।
आसपास के 40 गांवों के लोगों की मौलिक जरूरत जुड़ी हुई इस श्मशान भूमि की हालत बेहद खस्ता है। इस बारे में रमेश कुमार, अशोक कुमार, चमन सिंह, रणजीत, प्रताप, चमारू राम, त्रिलोक सिंह, सोनू और अन्य का कहना है कि बरसों पहले श्मशान भूमि पर अंत्येष्टि गृह और लकड़ी स्टोर के साथ वर्षाशालिका का निर्माण किया गया था। अब यह बदहाल हो चुकी है। श्मशान भूमि पर अंतिम संस्कार में शामिल होने वाले लोगों को वर्षाशालिका में खड़ा होते डर लगता है। मजबूरन खुले में खड़े रहना पड़ता है।
इसलिए जिम्मेदार है प्रदेश की सरकार
इस विकट समस्या के समाधान को लेकर मीडिया की तरफ से जब ग्राम पंचायत बगढार के प्रधान व्यास देव से बात की गई तो उन्होंने कहा कि पंचायत ने 2 अक्टूबर 2023 को श्मशान भूमि के सुधार के लिए प्रस्ताव पारित करके जिला प्रशासन को भेजा था, लेकिन अभी तक मांग के अनुरूप बजट मुहैया नहीं कराया गया है। अब सोचने वाली बात है कि पंचायत महीनों पहले प्रस्ताव बनाकर भेज चुकी है और बात जिला प्रशासन की मंजूरी पर अटकी हुई है। इसी के साथ यह बात भी किसी को बताने की जरूरत नहीं कि जिले की अफसरशाही खुद विकास के दावे करने वाले राजनेताओं के रहम-ओ-करम के सहारे खड़ी हुई है।