साहित्य चक्र

Hum Do Hamare Baarah: मुद्दे की बात का विरोध करने वालों की हालत ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’ से बढ़कर और कुछ भी नहीं

ध्यान रहे, दो दिन पहले ही जनसंख्या विस्फोट के मुद्दे पर आधारित फिल्म ‘हम दो-हमारे बारह’ (Hum Do Hamare Baarah) का पोस्टर रीलीज हुआ है। इसमें देखा जा सकता है कि फिल्म में लीड रोल प्ले कर रहे अन्नू कपूर काफी सारे बच्चों से घिरे हुए हैं। बगल में एक तरफ एक प्रैग्नैंट लेडी खड़ी है और दूसरी तरफ वकील भी मौजूद है। फिल्म के पोस्टर को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा गया है, ‘जल्द ही हम चीन को पीछे छोड़ देंगे’। इस पोस्ट को लेकर सोशल मीडिया पर भी काफी हंगामा बरपा हुआ है।

अब इसे लेकर सोशल मीडिया पर बवाल शुरू हो गया है। दरअसल, एक समुदाय विशेष से संबंध रखते एक कथित पत्रकार ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा है, ‘सैंसर बोर्ड इस तरह की फिल्म को अनुमति कैसे देता है, जो मुसलमानों को जनसंख्या विस्फोट के कारण के रूप में दर्शाती हैं और समुदाय पर अटैक को लगातार बढ़ावा देती हैं। इस तरह एक मुस्लिम परिवार की तस्वीर लगाकर हम दो-हमारे बारह लिखना पूरी तरह से इस्लामोफोबिक है’। इस ट्वीट के बाद अब उस समुदाय विशेष को आपत्ति है कि इस फिल्म के जरिये उन्हें टारगेट किया जा रहा है। उनके प्रति समाज में भ्रम फैलाया जा रहा है।

हालांकि विवाद बढ़ता देख फिल्म के डायरैक्टर कमल चंद्रा ने इस पर सफाई दी है। उनका कहना है कि यह फिल्म किसी भी समुदाय विशेष की छवि खराब करने के लिए नहीं बनाई गई है। बस सही नजरिए से देखने की जरूरत है। हम किसी भी समुदाय की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचा रहे हैं, न ही किसी को टारगेट कर रहे हैं। जब फिल्म देखेंगे, तब आपको भी लगेगा कि बिना किसी को आहत किए हुए भी संवेदनशील मुद्दों पर फिल्म बनाई जा सकती है।

यह तो बात है आरोप और अपनी सफाई की, लेकिन दूसरी ओर कायदा भी यही कहता है कि पहले एक बार पूरी बात समझे बिना हमें रिएक्ट नहीं करना चाहिए। फिल्म को देखे बिना ही उस पर आपत्ति उठाना कहां का न्याय है। यह तो मुद्दे की भ्रूणहत्या करने जैसा है। बावजूद इसके फिल्म के पोस्टर पर आपत्ति उठाने वाले कथित पत्रकार राणा अयूब को यह भी सोचना चाहिए कि एक पत्रकार किसी समुदाय विशेष का नहीं होता। एक समालोचक होता है। भाई को अगर समालोचक की परिभाषा भी नहीं पता हो तो वह भी पढ़ लेनी चाहिए। बिल्कुल तटस्थ होना चाहिए। यही पत्रकारिता का धर्म है, नहीं तो लोग यूं ही पानी पी-पीकर कोसते एक-दूसरे को कोसते रहेंगे।

क्या कहते हैं आंकड़े

इसके इतर अब अगर फिल्म की पृष्ठभूमि बने मुद्दे की हकीकत की बात करें तो हम में से हर कोई जानता है कि यही एक समुदाय विशेष है जो जनसंख्या वृद्धि के मामले में तरक्की की राह पर है। प्यू रिसर्च सेंटर के वरिष्ठ शोधकर्ता और धर्म से जुड़े मामलों की जानकार स्टैफनी क्रैमर के अनुसार पिछले 60 साल में भारतीय मुसलमानों की संख्या 4% बढ़ी, जबकि हिंदुओं की जनसंख्या करीब 4% घटी है। बाकी धार्मिक समूहों की आबादी की दर लगभग उतनी ही बनी हुई है। 1990 की शुरुआत में भारतीय मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर 4.4 थी, जो 2015 में 2.6 हो गई। यह चत्मकार पहली बार हुआ है। उधर, उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद से सामने आए तुलनात्मक आंकड़ों के हिसाब से 2011 में 2,140,745 आंकी गई हिंदू आबादी 2022 में 2,480,267 और दूसरी तरफ मुसलमानों की आबादी 314,812 की बजाय 364,741 अनुमानित मानी गई है। अब सोचने वाली बात है कि एक क्षेत्र के ये हालात हैं तो बाकी देश के क्या होंगे।

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