शिमला : हिमाचल प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था का दिवाला पिट चुका है। हालत इतनी बुरी हो चली है कि अब राज्य की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार 9 सौ ज्यादा स्कूलों को या तो बंद करने या दूसरों में मर्ज करने के बारे में सोच रही है। इसका कारण स्कूलों में विद्यार्थियों की गिरती गिनती को माना जा रहा है। गजब की बात तो यह है कि इनमें से 828 में सिर्फ 5-5 विद्यार्थी पढ़ रहे हैं तो 99 स्कूल ऐसे भी हैं, जिनमें एक भी छात्र नहीं है। इतना ही नहीं, राज्य के जिन हजारों स्कूलों में स्टूडैंट्स हैं, उन्हें पढ़ाने के लिए टीचर्स भी नहीं हैं।
हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों की हालत को लेकर चिंता में पड़े और हल ढूंढ रहे मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू एक बयान पर गौर करें तो 2002-3 के शैक्षणिक सत्र में पहली कक्षा में 130466 विद्यार्थी थे, पर 2023-24 में सिर्फ 49295 ही बचे हैं। शिक्षा विभाग की बैठक में सामने आए आंकड़ों के हिसाब से इस वक्त राज्य के 701 प्राइमरी स्कूलों, 109 अतिरिक्त स्कूलों और 18 मिडल स्कूलों में सिर्फ 5-5 छात्र हैं। 89 प्राइमरी और 10 मिडल स्कूलों में तो कोई दाखिला हुआ ही नहीं। अब सुक्खू सरकार ने कुल 460 स्कूलों को इनके 2 से 3 किलोमीटर के दायरे में स्थित दूसरे स्कूलों में मर्ज करने का फैसला लिया है। इनमें 18 मिडल स्कूल शामिल हैं। इसके अलावा जिन स्कूलों में कोई विद्यार्थी नहीं है, उन्हें बंद कर दिया जाएगा।
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सरकार के पास क्या है इन सवालों का जवाब?
इस फैसले के साथ राज्य की सरकार की तरफ से विभाग के पास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए पर्याप्त स्टाफ होने की संभावना जताई जा रही है, लेकिन सोचने वाली बात है कि पहली बात तो सरकारी स्कूलों से लोगों का मोहभंंग क्यों हो रहा है? दूसरा अब जबकि इनमें से बहुत से स्कूलों को मर्ज और बंद कर दिया जाएगा तो क्या इससे शिक्षकों की कमी को पूरा किया जाना संभव है? उल्लेखनीय है कि 350 स्कूलों में कहीं एक-दो तो कहीं ज्यादा शिक्षकों की कमी है। इतना ही नहीं, 3100 स्कूल तो सिर्फ एक टीचर के सहारे चल रहे हैं। इस संकट के लिए आखिर जिम्मेदार है तो है कौन? क्या इन ज्वलंत सवालों का सुक्खू सरकार के पास कोई जवाब है?
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