Kachori wali Amma: बुढ़ापे में छूटा पति का हाथ तो निकल पड़ी अंधेरी रातों में कचौरी बेचने, रोज खाली चबूतरे पर काम करके रोज कमा रही 2 हजार रुपए
शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश). आदमी अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा रखता हो तो फिर हर मुश्किल आसान हो जाती है। यही सीख दे रही है उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में कचौरी वाली अम्मा के नाम से मशहूर एक बुजुर्ग औरत की कहानी। शब्द चक्र न्यूज अपने विशेष शब्दों के माध्यम से प्रेरणा की इस कहानी से आपको रू-ब-रू करा रहा है कि किस तरह जिंदगी का आधे से ज्यादा हिस्सा गुजारने के बाद परिवार का पेट पालने वाले पति का हाथ छूटा तो कैसे अपने तीन बेटियों और एक बेटे को उनकी जिंदगी की मंजिल तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया। कभी पाई-पाई की मोहताज हो गई इस महिला की हालिया आमदन 2 हजार रुपए रोजाना की है, जो अपने आप में किसी बड़ी रकम है। आइए मिलते हैं संघर्ष की इस प्रतिमूर्ति से…
शाहजहांपुर के कोतवाली के पास सुनहरी मस्जिद के सामने रहने वाली 60 साल की अंजू वर्मा बताती हैं कि उनके पति विनोद वर्मा परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे। 5 साल पहले दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया तो वह (अंजू वर्मा) परेशान हो गई कि चार औलादों (3 बेटियां और एक बेटा) का भरण-पोषण आखिर किस तरह चलेगा अब। हार न मानते हुए अंजू ने आगे बढ़ने का फैसला किया और अपने पति के कचौरी नाश्ते के व्यवसाय को फिर से जिंदा कर लिया। वह रोज रात में 10 बजे उस वक्त कचौरी बेचने निकलती हैं, जब पूरे बाजार में सन्नाटा छा जाता है। बंद दुकानों के सामने खाली चबूतरे पर आलू की स्टफिंग, सोयाबीन के साथ लहसुन की चटनी के साथ 30 रुपए प्लेट के हिसाब से गर्म कचौरियां परोसती हैं। लोग, खासकर सर्दियों और मानसून के दौरान कचौरी का स्वाद लेने के लिए कतार में लगते हैं और उन्हें घर के लिए पैक भी करवाते हैं। नतीजा यह हुआ कि बुजुर्ग महिला अंजू वर्मा अब न सिर्फ रोज लगभग 2 हजार रुपए कमा लेती हैं, बल्कि शाहजहांपुर के साथ-साथ पूरे उत्तर प्रदेश में कचौरी वाली अम्मा के उपनाम से मशहूर हो गई।
यह पूछे जाने पर कि उन्होंने रात में अपना आउटलेट स्थापित करने का विकल्प क्यों चुना तो अंजू कहती हैं कि शुरुआत में दुकान जैसी उपयुक्त व्यवस्था किराये पर लेने के साधन नहीं थे। भगवान की कृपा से धीरे-धीरे सब सही हो गया। अपने कचौरी के व्यवसाय की कमाई से उन्होंने अपनी एक बेटी की शादी की। 20 साल का सबसे छोटा बेटा एक कॉलेज में पढ़ रहा है। अपनी दिनचर्या के बारे में बात करते हुए कहती हैं, ‘मैं सुबह 3 बजे के बाद अपनी दुकान बंद करके 5 बजे तक सो जाती हूं। दोपहर में सब्जियां खरीदने के लिए उठती हूं। रात 10 बजे दुकान खोलने से पहले आटा और भरावन तैयार करती हूं’।
शहर में एक सामाजिक संस्था चलाने वाले अभिनव गुप्ता बताते हैं, ‘मैं कचौरी वाली अम्मा का बड़ा फैन हूं। मैं अक्सर अपने दोस्तों के साथ ताजी कचौरी का आनंद लेने के लिए उसकी दुकान पर जाता हूं। वह साफ-सफाई से खाना तैयार करती हैं’। उधर, अब तो प्रशासनिक तौर पर भी अंजू वर्मा की मदद की बात सामने आ रही है। पता चला है कि कचौरी वाली अम्मा के संघर्ष की यह कहानी जैसे ही पुलिस अधीक्षक एस आनंद के संज्ञान में आई, उन्होंने दुकान को सुरक्षा मुहैया कराने के विशेष निर्देश जारी कर दिए। उनका कहना है कि एक महिला का रात में दुकान लगाना बहुत बड़ी बात है। पुलिस अधिकारियों को उनकी और उनकी दुकान की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है।