- मूर्तिकला के बेहतरीन कारीगर थे चम्बा शहर के चमेशनी मोहल्ले की रहने वाली लता के पिता पूर्ण चन्द, 2017 में हो गया निधन
- 5 दशक श्रीराम लीला क्लब के सदस्य के रूप में सेवा कर चुके पूर्ण चंद के निधन के बाद बेटी लता बनाती हैं मूर्तियां
- पराली, लाल मिट्टी, प्लास्टर, कच्ची रस्सी, फट्टे और मलमल के कपड़े को आकार दे करती है रंगों के साथ अठखेलियां
राजेन्द्र ठाकुर/चम्बा
वही हुनर, वही कलाकारी, उन्हीं चीजों का इस्तेमाल। कुछ नहीं बदला, बदला है तो सिर्फ कलाकार। जी हां चम्बा की एक बेटी ने अपने पिता के हुनर को जिन्दा रखने के लिए मिट्टी और रंगों से खेलना शुरू कर दिया। पिछले करीब 5 साल से मूर्तियां बना रही इस बेटी ने अब नवरात्र उत्सव (Navratri) उत्सव के दिनों में मां काली की दो मूर्तियां बनाई हैं, जिन्हें सुल्तानपुर वार्ड के माई का बाग और जुल्हाकड़ी मोहल्ले के मां ज्वाला जी मंदिर में माता की ज्योति के साथ रखा जाएगा।
बता दें कि चंबा जिला मुख्यालय के साथ लगते मोहल्ला चमेशनी के रहने वाले मूर्तिकला के बेहतरीन कारीगर थे। श्रीराम लीला क्लब चम्बा के बहुत पुराने सदस्य थे और क्लब के साथ लगभग 45-50 साल के साथ जुडे़ हुए थे और सेवा करते थे। 2017 में पूर्ण चन्द का निधन हो गया। इसके बाद पूर्ण चंद की बेटी लता ने पिता के हुनर को जिन्दा रखने की सोच को लेकर यह काम शुरू कर दिया।
लता ने बताया कि उसके पिता उसने पराली, लाल मिट्टी, प्लास्टर, कच्ची रस्सी, फट्टे और मलमल का कपड़ा और अलग-अलग रंगों का प्रयोग करते हुए 10-15 दिन की कड़ी मेहनत के बाद मां काली की दो मूर्तियां तैयार की हैं। लता ने कोरोना काल के दौरान श्रीराम लीला क्लब चम्बा के लिए रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण के पुतले भी बनाए थे।
लता का कहना है कि जब उनके पिता पूर्ण चन्द मां काली की मूर्तियां बनाते थे तो वह उनके साथ मूर्ति बनाने में सहायता करती थी। मगर पिता के निधन के होने के बाद लता ने इसका काम बंद कर दिया। हालांकि कई बार लोग लता के पास आकर मूर्ति बनाने के लिए आग्रह करते थे।
इसके बाद लता ने पिता के हुनर को जिन्दा रखने के लिए दोबारा से मूर्ति बनाने का फैसला लिया। इस बारे में लता का कहना है कि आज के समय लड़के लड़कियों में कुछ भी फर्क नहीं है। आज की लड़कियां किसी से कम नहीं हैं, चाहे किसी भी फिल्ड में ही क्यों न हो। बस उनके उपर विश्वास, भरोसा और यकीन करें।