Supreme Court on Hijab: स्कूूल में हिजाब नहीं पहनने देने पर दी गई राइट टू ड्रैस की दुहाई, अदालत ने कहा-मौलिक अधिकार का मतलब ये नहीं कि आप नंगे घूमने लग जाओ
नई दिल्ली/बैंगलुरू. हमारा संविधान हमें अपनी मर्जी से कपड़े पहनने का हक देता है। इसे हम Right To Dress कहते हैं, पर मर्जी से कपड़े पहनने के मौलिक अधिकार का यह मतलब नहीं कि हम नंगे घूमने लग जाएं। बीते दिन देश की सर्वोच्च अदालत से एक मामले में ऐसी ही टिप्पणी आई है। मामला कर्नाटक के स्कूलों में मुस्लिम समुदाय की लड़कियों के लिए हिजाब पहनने पर रोक का है। बड़ी हैरानी की बात एक हिंदू वकील ने मुस्लिम समुदाय की बात को बड़ा करने के लिए अपनी बहस में कई तरह की दलीलें दी। विदेशों में हुए फैसलों का जिक्र किया और यहां तक कि दूसरे धर्मों के चिह्न धारण करने का हवाला भी दिया, लेकिन देश की अदालत ने हर दलील को काट दिया। भारतीय संविधान में मौजूद अनुच्छेद 19, 21 और 25 में मिले परिधान के मालैक अधिकार को भी आधार बनाने की कोशिश भी इन्हीं तमाम नाकाम दलीलों में से एक रही। कैसे हुआ यह सब, आइए जानते हैं…
ध्यान रहे कि कनार्टक के स्कूलों में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने को लेकर विवाद काफी दिनों से चल रहा है। हाईकोर्ट ने कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब पर रोक के सरकारी आदेश को सही ठहराया था। साथ ही कहा था कि हिजाब इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है। इसके बाद कनार्टक हाईकोर्ट के फैसले को चुनाती देने के लिए कई मुस्लिम लड़कियों ने शीर्ष अदालत (Supreme Court) में याचिकाएं दाखिल कर दी। इन दिनों इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की पीठ सुनवाई कर रही है।
बुधवार को याचिकाकर्ता मुस्लिम छात्राओं की ओर से दलीलें दी गईं कि स्कूल यूनिफार्म के रंग का हिजाब पहनने में क्या हर्ज है। हिजाब पहनने वाली लड़कियों को स्कूल में प्रवेश करने से रोका जाता है, जिससे उन्हें संविधान के अनुच्छेद 19, 21 और 25 में मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। उनका शिक्षा का अधिकार प्रभावित होता है। याचिकाकर्ता आशिया शिफा की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ वकील देवदत्त कामथ ने कहा कि वह यूनिफॉर्म के खिलाफ नहीं हैं और न ही उन्होंने उसे चुनौती दी है। उन्होंने उस सरकारी आदेश को चुनौती दी है, जिसमें हिजाब पहनने पर रोक है। यूनिफॉर्म के साथ उसी रंग का हिजाब पहनने में क्या हर्ज है। इससे कौन से नियम का उल्लंघन हो जाता है। वह सिर्फ हिजाब पहनने की इजाजत मांग रहे हैं बुर्का या जिलबाब (पूरा शरीर ढकने वाली ड्रैस जिसे मुस्लिम महिलाएं पहनती हैं) की नहीं।
कामथ ने रीजनेबल एक्मोडेशन यानि तर्कसंगत संयोजन के सिद्धांत की दुहाई देते हुए कहा कि हिजाब पहनकर जाने पर लड़कियों को स्कूल में प्रवेश से रोका जाता है। राज्य सरकार का आदेश एक समुदाय विशेष के खिलाफ है। इस दलील पर पीठ ने कहा ये सही नहीं है, क्योंकि एक ही समुदाय है, जो हिजाब पहनकर आना चाहता है। दूसरे समुदाय ड्रैस कोड का पालन कर रहे हैं। यह एक समुदाय विशेष की बात नहीं है, अन्य धर्मों के छात्र भी धार्मिक चिह्नों को धारण करते हैं। दक्षिण भारत में लोग संध्या वंदन करते हैं चिह्न धारण करते हैं। रुद्राक्ष पहनते हैं। कुछ क्रॉस पहनते हैं। इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि रुद्राक्ष और क्रास शर्ट के अंदर पहना जाता है, उससे यूनिफॉर्म के नियम का उल्लंघन नहीं होता। ऐसे ही यज्ञोपवीत भी कपड़ों के अंदर पहना जाता है।
कामथ ने अपनी दलीलें जारी रखते हुए सुप्रीम कोर्ट के ही पहले के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि राइट टू ड्रैस अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का हिस्सा है। इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि आप इस दलील को लॉजिकल ऐंड तक नहीं ले जा सकते, क्योंकि राइट टू ड्रैस में राइट टू अनड्रैस भी शामिल है। कामथ ने कहा कि वह इस तरह की बात नहीं कर रहे। स्कूल में कोई अनड्रैस नहीं होता। यहां सवाल सिर्फ इतना है कि यूनिफॉर्म के साथ हिजाब पहनना अनुच्छेद 19 के तहत आएगा और क्या इस पर रोक लगाई जा सकती है। कामथ ने मामले को पांच जजों की संविधान पीठ को भेजने का भी अनुरोध किया। उन्होंने धार्मिक चिह्नों को पहनने के बारे में दुनिया के अन्य देशों जैसे दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, अमेरिका और इंग्लैंड की अदालतों के फैसलों का हवाला दिया। इन सबको भी गलत साबित करते हुए कोर्ट ने कहा कि वह विदेशी फैसलों का हवाला न दें। वहां के फैसले वहां की संस्कृति और परिस्थितियों के आधार पर होंगे। वह भारत की बात करें। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि जितनी विभिन्नता हमारे देश में है, उतनी दुनिया के और किसी देश में नहीं है और सभी देशों में नागरिकों के लिए समान कानून हैं।