CJI के सामने आया अजीब मामला; बीवी के साथ हमबिस्तर होने के लिए HC से Parole मिली तो बढ़ गई List; परेशान सरकार SC पहुंची
नई दिल्ली. भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमन्ना (NV Ramana) के सामने सोमवार को एक बड़ा ही अजीब केस आया है। मामला कैदी को पैरोल का है, वह भी बीवी के साथ हमबिस्तर होने के लिए। हालांकि ऐसा कोई कानून तो अभी तक नहीं बना है, लेकिन बीते दिनों राजस्थान हाईकोर्ट ने एक कैदी को ऐसे मामले में पैरोल दे दी थी। यही अब राज्य सरकार के लिए फजीहत बन गई है। इसी एक मकसद को हथियार बनाकर अब पैरोल मांगने वालों की लिस्ट आए दिन लंबी होती जा रही है। नतीजा यह हुआ कि मजबूर होकर राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। अब इस मामले में 29 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई तय करेगी कि क्या यह आधार बनता भी है?
दरअसल, नजीर बना मामला राजस्थान के भीलवाड़ा का है, जहां 34 साल के नंदलाल सेशन कोर्ट ने साल 2019 में एक मामले में उम्रकैद की सजा का फैसला सुनाया था। उसके बाद से वह अजमेर की जेल में बंद है। उसे वर्ष 2021 में 20 दिन की पैरोल मिली थी। उस समय उसका आचरण ठीक रहा था. पैरोल खत्म होने के बाद वह नियत समय पर वापस आ गया था। उसकी पत्नी रेखा अपने ससुराल में ही रहती है। बीते दिनों रेखा ने अजमेर की डिस्ट्रिक्ट पैरोल कमेटी के अध्यक्ष को आवेदन देकर यह मांग की थी। महिला ने अपील की थी कि वह कैदी की वैध पत्नी है और उनकी कोई संतान नहीं है, इसलिए उसके पति को पैरोल पर जेल से बाहर आने देना चाहिए, जिससे वह संतान सुख प्राप्त कर सके। महिला ने इसके लिए अपने पति के जेल में रहने के दौरान अच्छे व्यवहार का भी हवाला दिया था। उसका आवेदन कलेक्टर ऑफिस में पैंडिंग था और मामले की जल्द सुनवाई के लिए वह राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ पहुंच गई।
मामला राजस्थान हाई कोर्ट पहुंच गया तो इसी साल अप्रैल में राजस्थान हाईकोर्ट की 2 जजों वाली जोधपुर बैंच ने कहा था, ‘हिंदू दर्शन में चार पुरुषार्थ हैं-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। जब एक कैदी जेल में होता है तो वह इन पुरुषार्थों से वंचित हो जाता है। हालांकि इनमें से तीन पुरुषार्थ धर्म, अर्थ और मोक्ष आदमी अकेले हासिल कर सकता है, लेकिन काम पति-पत्नी पर निर्भर करता है। ऐसी स्थिति में कैदी की निर्दोष पत्नी इससे वंचित होती है। शादीशुदा महिला मां बनना चाहती है तो उसकी यह इच्छा पूरी करने में स्टेट की जिम्मेदारी काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। भले ही राज्य के पैरोल से जुड़े नियमों (Rajasthan Rules To Be Released The Prisoners on Parole) में पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने के लिए कैदी की रिहाई का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, लेकिन गर्भधारण ( Conceive) के लिए इजाजत नहीं देना पत्नी के अधिकारों का हनन होगा। महिला के अधिकार को देखते हुए हम कैदी को पैरोल देने का आदेश देते हैं।
नंदलाल को 15 दिन की पैरोल दिए जाने के हाईकोर्ट के फैसले को राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे डाली। राज्य सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया है कि राज्य के नियम के मुताबिक संतान पैदा करने के लिए पैरोल दिए जाने को लेकर कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। इसके बाद इस आदेश की वजह से दिक्कतें हो रही हैं। ऐसे आवेदनों की बाढ़ सी आ गई है। राज्य सरकार की तरफ से यह मामला चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना के समक्ष रखा गया है। हालांकि देखा जाए तो संविधान से बड़ा हमारे देश में कोई नहीं है और इसके अनुच्छेद-21 का हवाला देते हुए राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर बैंच पहले ही संतान पैदा करने के अधिकार को जीवन के अधिकार से जोड़ चुकी है। बहरहाल अब सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में 29 जुलाई को सुनवाई करेगी।