Martyr Nishant’s Last Journey: जर्रा-जर्रा 3 घंटे कहता रहा-अभी रुखसत न करो कि दीवाने का दीदार अभी अधूरा है…
हिसार. Martyr Nishant’s Last Journey: जिले के हांसी इलाके में शनिवार को ऐसा माहौल बन गया कि इसे बयां करने के लिए बड़े से बड़े शब्दकोष का शब्दभंडार छोटा पड़ जाए। एक ओर सैकड़ों आंखों में आंसू थे, दूसरी ओर हाथ में तिरंगा और जुबान पर जयघोष भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था। यह जम्मू-कश्मीर में फिदायीन हमले में शहीद हुए राइफलमैन निशांत मलिक का अंतिम सफर था। राखी के एक दिन बाद तो आजादी दिवस से दो दिन पहले तिरंगे में लिपटकर आए भारत मां के इस रक्षक की अंतिम यात्रा के प्रति इलाके के लोगों में इतनी श्रद्धा थी कि हांसी शहर के आदर्श नगर स्थित रिहायश से पैतृक गांव ढंडेरी तक 21 मिनट में तय होने वाला करीब 10 किलोमीटर का रास्ता 3 घंटे लंबा हो गया। मानो यह सड़क कह रही थी कि अभी रुखसत न करो इस दीवाने को, मैं भी तो जी भरकर दीदार कर लूं इसका…
बता दें कि आजादी दिवस से 4 दिन पहले गुरुवार सुबह जम्मू-कश्मीर के राजौरी में दरहाल तहसील के परगाल ढोक में सेना के कंपनी ऑपरेटिंग बेस कैंप के पास संतरी ने संदिग्ध हलचल देखी। इस पर उसने ललकारा तो आतंकियों ने ग्रेनेड दागा। इसके बाद दोनों कैंप में घुसने की कोशिश करने लगे, लेकिन जवानों ने उन्हें घेर लिया। इसके बाद शुरू हुई मुठभेड़ में दोनों हमलावरों को मार गिराया गया। छह जवान घायल हुए। उन्हें पास के अस्पताल में ले जाया गया, लेकिन चार जवानों राजस्थान के झूंझूनू निवासी सूबेदार राजेंद्र प्रसाद, तमिलनाडु के राइफलमैन लक्ष्मन डी, हरियाणा के शाहजहांपुर फरीदाबाद निवासी राइफलमैन मनोज कुमार और राइफलमैन हरियाणा के हांसी के आदर्श नगर निवासी निशांत मलिक की नब्ज थम गई।
हांसी से ढंडेरी तक रहा देशभक्ति का माहौल
शनिवार को निशांत मलिक का जैसे ही तिरंगे में लिपटा पार्थिव शरीर घर पहुंचा तो माता-पिता और तीनों बहनें उससे लिपट गए। सुबह 9 बजे हांसी से शहीद की अंतिम यात्रा शुरू हुई, जो 9.8 KM दूर पैतृक गांव ढंडेरी तक जानी थी। रास्ते में शहीद की अंतिम यात्रा पर फूल बरसाए गए और भारत माता की जय के नारे लगाए गए। फिर गांव के राजकीय स्कूल में पार्थिव देह को लोगों के अंतिम दर्शनों के लिए रखा गया। पूरा गांव अपने सपूत के दर्शन के लिए उमड़ पड़ा। लोग हाथों में तिरंगा लेकर शहीद को श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंचे। शहीद को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। इसके बाद आर्मी ने शहीद के पिता को तिरंगा भेंट किया। इसके बाद 1 बजकर 10 मिनट पर शहीद को मुखाग्नि दी गई।
पहले पिता कर चुके देश की निगेहबानी, 2 साल पहले निशांत बने फौजी
तीन बहनों के इकलौते भाई निशांत मलिक के पिता जयवीर मलिक कारगिल के योद्धा हैं, वहीं करीब दो साल पहले ही निशांत भी सेना में भर्ती हो गया था। जयवीर मलिक ने बताया, ‘कारगिल युद्ध में गोली लगने पर मुझे जब सेना ने सम्मानित किया तो इसके बाद होश संभालने वाले बेटे की भी इच्छा यही थी कि उसे भी सेना में सम्मान मिले। बड़ी दो बहनों की शादी हो चुकी है, वहीं छोटी बहन की शादी दिसंबर में संभावित थी। अभी 18 जुलाई को ही वह 45 दिन की छुट्टी काटकर आर्मी कैंप लौटा था। बुधवार शाम को उसने वीडियो कॉल की थी, लेकिन गुरुवार सुबह दो बार कॉल करने के बावजूद उसकी अपनी बहन से बात नहीं हो सकी। दोपहर में जब मैं कैंटीन में सामान लेने गया हुआ था तो बेटे की शहादत की खबर मिली’।
एक खामौश आवाज…
दूसरी ओर इस मातम और गर्व से भरे माहौल के बीच ऐसा लग रहा था, मानो एक मूकध्वनि हर ओर गूंज रही थी, जो बहनों को दिलासा दे रही थी कि ‘प्यारी बहना! तेरी रखी का कर्ज उधार रहा मुझ पर, इस जन्म में भारत मां की रक्षा का वचन निभा लूं’। ध्यान रहे, छुट्टी से लौटते वक्त निशांत को बहनों ने राखी दी थी। अब जब भारत मां का वचन निभाने की बारी आई तो वह न तो बहनों की दी गई राखियों को ही अपनी कलाई पर बांध सके और न ही बहनों से इस खास दिन पर बात ही हो सकी।