संजीव तेहरिया/फरीदकोट
जिंदगी की जंग हथियारों से नहीं, बल्कि हौसलों से जीती जाती है। ऐसे हमारे इतिहास में न जाने कितने ही उदाहरण भरे हुए हैं। ऐसा ही एक इतिहास पंजाब के छोटे से गांव किला नौ की एक बेटी ने भी रचा है। 14 साल की जैसमीन कौर नामक यह लड़की नैशनल स्टाइल कबड्डी के नैशनल स्कूल गेम्स में पंजाब की तरफ से खेलकर दूसरे नंबर पर रही है। गांववासियों ने उसका भव्य स्वागत कर उसे सम्मानित किया। वहीं, खेल अधिकारी और जैसमीन की कोच मनजीत कौर ने भी पहुंचकर उसे विशेष तौर पर सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि कहा कि मैं जैसमीन को एशियन गेम्स में खेलती देखना चाहती हूं।
इस बेटी का यह सफर इतना रोचक क्यों है, इसका जवाब हैं इसके इर्द-गिर्द के हालात। घर में बेहद गरीबी होने के कारण न तो सही से डाइट मिल पाती थी और न ही शहर में कबड्डी के प्रेक्टिस पर जाने को ज्यादा पैसे होते थे। ऊपर से गांव के छोटे से परिवार की लड़की को अकेले सुबह और देर शाम गांव से दूर शहर में जाना भी चनौतिपूर्ण था। लेकिन जैसमीन पर कुछ कर दिखाने का और अपने पिता के सपने को पूरा करने का जुनून सवार था, इसलिए उसने इस चनौती को स्वीकार किया और आज इस मुकाम पर पहुंची।
नानक सिंह तो नहीं खेल पाए, लेकिन बच्चों को जरूर खिला रहे
बता दें कि गांव किला नौ के नानक सिंह बचपन में कबड्डी खेलने का शौक रखते थे, लेकिन यह शौक सपना बनकर रह गया। इस बारे में नानक सिंह की मानें तो इनके पिता पिता इन्हें कबड्डी नहीं खेलने देते थे और उसे बहुत मार पड़ती थी। जिला स्तर तक ही खेल सके। असल में पिता का कहना था कि अगर कबड्डी खेलोगे तो उसके आगे क्या करोगे अपना जीवन यापन कैसे करोगे। यही सवाल लिए वह खुद बाल-बच्चेदार हो गए। हालांकि नानक सिंह अपने पिता वाला जवाब अपने बच्चों को नहीं दिया। वो कहते हैं ना, ‘मां पर पूत-पिता पर घोड़ा, घना नहीं तो थोड़ा-थोड़ा’ ठीक वही हुआ, जब दो बेटियां और एक बेटा खेल की तरफ आकर्षित हो गए। दरअसल, नानक सिंह अपने पुराने दिनों के बारे में बच्चों से अक्सर बात किया करते थे। पहले बड़ी बेटी गुरप्रीत कौर ने कबड्डी खेलना शुरू किया तो फिर बहन को देखकर जैसमीन को भी शौक लग गया। हालांकि घर में बेहद गरीबी होने के कारण न तो सही से डाइट मिल पाती थी और न ही शहर में कबड्डी के प्रैक्टिस पर जाने को ज्यादा पैसे होते थे। ऊपर से गांव के छोटे से परिवार की लड़की को अकेले सुबह और देर शाम गांव से दूर शहर में जाना भी चनौतिपूर्ण था।
गांव की खो-खो टीम को बनाया कबड्डी, लेकिन 15 KM आने-जाने में होती थी दिक्कत
जैसमीन कौर बताती है कि जब वह गांव के ही प्राइमरी स्कूल में पांचवीं कक्षा में पढ़ती थी तो उसे कबड्डी खेलने का शौक पैदा हो गया। स्कूल में लड़कियों की सिर्फ खो-खो की टीम थी। उसने टीचर जगतार सिंह के सामने कबड्डी खेलने की इच्छा जाहिर की तो उन्होंने खो-खो टीम को ही जैसमीन के साथ कबड्डी भी खेलने को तैयार किया। जैसमीन पहले ब्लॉक और फिर जिला स्तर पर शानदार खेल दिखा हर बार अव्वल आने लग गई। जैसमीन ने बताया कि प्रैक्टिस के लिए उसे 15 किलोमीटर दूर फरीदकोट जाना पड़ता था। पहले बहन के साथ सुबह-शाम ऑटो पर जाती थी तो बाद में साइकल पर जाने लग गई। दोनों बहनों ने लोगों के खेत में काम कर-करके परिवार का हाथ बंटाया। माली हालत थोड़ी मजबूत हुई तो इलैक्ट्रिक स्कूटर ले लिया।
एशियन गेम्स खेलना और पुलिस अफसर बनना चाहती है लाडली जैसमीन
मेहनत रंग लाने लगी। 2023 में राज्य स्तरीय खेडां वतन पंजाब दीयां में तीसरा स्थान और इसी साल रोपड़ में आयोजित राज्य स्तरीय मुकाबलों में भी तीसरा स्थान जैसमीन ने हासिल किया। इससे पहले दो बार बिहार और झारखंड में राष्ट्र स्तरीय खेलों में भाग ले चुकी है, जबकि बड़ी बहन गुरप्रीत कौर भी हैदराबाद में आयोजित हुई राष्ट्र स्तरीय खेलों में कबड्डी में भाग ले चुकी हैं। अब 7 से 11 दिसंबर तक हरियाणा के भिवानी में आयोजित नैशनल स्कूल गेम्स में जैसमीन कौर अंडर-19 में पंजाब की तरफ से नैशनल स्टाइल कबड्डी खेली तो वहां दूसरे स्थान पर रही। पूरे राज्य की 12 लड़कियों में फरीदकोट जिले से वह अकेली थी। इस टीम में उसका कहना है कि उसका अगला सपना एशियन गेम्स खेलना और बड़ी पुलिस अफसर बनना है। उधर, नानक सिंह का कहना है कि मजदूरी से परिवार का पेट मुश्किल से पलता है और बच्चों को अच्छी डाइट चाहिए। ऐसे में सरकार अगर उनकी आर्थिक मदद करे तो उनकी बेटियां अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी देश और पंजाब का नाम चमका सकती हैं।